
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने कार्यकाल खत्म होने से पहले के अचानक इस्तीफा देने के संभावित कारण का खुलासा किया है. उर्जित पटेल ने बताया है कि इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) यानी दिवालिया कानून को लेकर उनके और मोदी सरकार के बीच अचानक मतभेद हो गया था. उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि सरकार ने इस कानून में लोन न चुकाने वालों (डिफॉल्टर) पर नरमी बरती थी, जिसके कारण खराब कर्ज (Bad Loan) के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम को धक्का लगा.
पटेल ने अपनी किताब ‘ओवरड्राफ्ट’ (Overdraft- Saving the Indian Saver) में मोदी सरकार के साथ IBC को लेकर हुए अपने मतभेद का जिक्र किया है.
ज्ञात रहे कि उस समय भाजपा नेता अरुण जेटली वित्त मंत्री थे जब उर्जित पटेल ने अचनक इस्तीफा दे दिया था और एक वित्त के कम जानकार को आरबीआई गवर्नर बनाया गया था.
उर्जित पटेल के कार्यकाल में ही RBI ने फरवरी 2018 में IBC का पहला सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर में बैंकों को कर्ज वापस न चुकाने वाले लेनदारों तुरंत डिफॉल्टर के तौर पर क्लासीफाइ करने को कहा गया था. इसके साथ ही डिफॉल्टर को अपनी नीलामी के दौरान अपनी कंपनी दोबारा खरीदने से भी रोका जाना था.
उर्जित पटेल के मुताबिक, इसका मकसद दिवालिया कानून को मजबूत बनाना था ताकि कोई भी कंपनी या कंपनी प्रमोटर भविष्य में लोन डिफॉल्ट करने की कोशिश करे तो उस पर कड़ी कार्रवाई हो और बाकी लोगों को इससे सबक मिले.
उर्जित पटेल ने अपनी किताब में लिखा है कि फरवरी में RBI का सर्कुलर आने से पहले तक वह और वित्त मंत्री इस पूरे मुद्दे पर एकमत थे, लेकिन सर्कुलर आने के बाद सब कुछ बदल गया. मोदी सरकार ने इस सर्कुलर को वापस लेने का अनुरोध किया और इस दौरान ये अफवाह भी फैलाई गई कि ये कोड एमएसएमई सेक्टर को नुकसान पहुंचाएगा, जबकि ऐसा नहीं था.
उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल 2019 में इस मामले को लेकर सुनवाई में कोर्ट ने फरवरी 2018 वाले सर्कुलर में एकदिवसीय डिफॉल्ट रिजॉल्यूशन को समस्या नहीं बताया था. पटेल के मुताबिक इसके बाद जून 2019 में RBI की ओर से एक और सर्कुलर जारी किया गया था, जिसने उसे कमजोर बना दिया और दिवालियापन के प्रावधान को कमजोर कर दिया. इससे कई डिफॉल्टरों पर कार्रवाई में देरी हुई, जबकि कुछ दिवालियापन वाली अदालतों की कार्रवाई से बच गए.
एबीपी लाइव की इनपुट के साथ