
मुझे देखते ही उसने ‘जय हिन्द’ के साथ अभिवादन किया था. हालांकि वह शारीरिक तौर पर कमज़ोर ज़रूर था, लेकिन उसके चेहरे से ख़ुशी टपक रही थी. मैंने उसकी ख़ुशी को लक्ष्य किया था और उसने जवाब में कहा था, “उस दिन तो साहब कमाल हो गया. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा. लेकिन उस दिन जो हुआ उसका मुझे गुमान तक न था. नेताजी ने वार्ड के अंदर मुझे गले लगाते हुए कहा था कि राम सिंह तुम शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ कर जाओगे. मैं क्या कहूं साहब, उसी वक़्त से मेरी तकलीफें दूर होने लगीं. मेरा जीना सार्थक हो गया क्योंकि मुझ जैसे अदने सिपाही को भी सुभाष बाबू ने इतना स्नेह दिया. आप ही कहो न साहब, यदि ऐसे नेता के लिए मैं जान नहीं दूंगा तो फिर किसके लिए दूंगा!
कर्नल की डायरी: मौत की मस्ती जीने का सुख (पन्ना 1)
खुदा का शुक्र है कि उस अस्पताल में भर्ती हमारे तमाम घायल सिपाही धीरे-धीरे ठीक हो चले थे. सबों की सेहत करीब-करीब वापस मिल गयी थी.
कर्नल की डायरी: सन 1943 का वह दिन (पन्ना 2)
एक दिन मैंने एक डॉक्टर से पूछा था, “आप तो कहते हैं कि ये जवान चंद दिनों के ही मेहमान हैं, लेकिन ये सभी तो चंगे हो गए. आखिर यह सब कैसे हो गया?”
कर्नल की डायरी: चीन हिल हाक्का (पन्ना 3)
सच्चाई चाहे जो हो पर आस्था भी एक बहुत बड़ी चीज़ होती है. इसी विश्वास से उस डॉक्टर को कहना पड़ा था, “नेताजी का प्यार जवानों की जिंदगी बन गया. नेताजी ने जिस तरह इन जवानों को गले से लगाकर इनका हाल पूछा था, उसी हिम्मत के साथ जवानों ने कहा था, ठीक है साहब, बिलकुल ठीक. दरअसल, नेताजी ने उन जवानों में जीने के लिए ‘विल पॉवर’ पैदा कर दी थी. यही वजह थी कि वे जवान अपनी मौत का मुकाबला कर सके.”
कर्नल की डायरी: मोरैंग विजय के बाद (पन्ना 4)
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रति इसी विश्वास ने आज़ाद हिन्द फ़ौज को वह ताक़त दी थी जिसके चलते ब्रितानी सरकार की आँखों की नींद हराम हो गयी थी. ब्रितानी फ़ौज के खिलाफ ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ की चुस्त-दुरुस्त रणनीति का सारा श्रेय सुभाष बाबू को जाता है. यही वजह थी कि दुनिया के नक्शे पर आज़ाद हिन्द फ़ौज का नाम बड़ी तेज़ी से उभर कर आया था.
कर्नल की डायरी: वो सत्रह लड़कियां… (पन्ना 5)
सिंगापूर!
नेताजी ने ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ की कार्रवाइयों को और तेज़ करने की ज़रूरत पर काफी सोचा-विचारा था और यह तय किया था कि फ़ौज ब्रितानी हुकुमत से सीधा जंग छेड़ दे. ऐसे में यह ज़रूरी था कि हमारी फौजी तैयारी मुकम्मल और चुस्त दुरुस्त हो. हमारे पास हथियारों की कमी थी. इस कमी को पूरा करने के लिए नेताजी ने जापान से हथियार खरीदने का फैसला किया था. यहाँ यह बता देना भी ज़रूरी है कि जापान ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ को मुफ़्त हथियार देने तक को तैयार था. लेकिन यह पेशकश नेताजी की खुद्दारी को गवारा नहीं हुई. वह आज़ादी की लड़ाई किसी की दी हुई खैरात पर लड़ने को तैयार नहीं थे. वह जापान से हथियार बाक़ायदा खरीदने की सोच रहे थे. सवाल यह था कि हथियारों की खरीदारी के लिए पैसे कहाँ से आए. इस मसले पर नेताजी ने अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श किया और यह तय पाया गया कि इस काम के लिए अवाम की सहायता ली जाए.
कर्नल की डायरी: आधी रात के बाद (पन्ना 6)
नेताजी के आह्वान पर सिंगापूर में एक आम सभा बुलाई गयी जिसमें नेताजी ने बड़ी साफगोई से कहा, “दोस्तों अपने गुलाम मुल्क हिंदुस्तान को आज़ाद कराने का सिर्फ एक ही रास्ता बचा है कि अंग्रेज़ी साम्राज्य के खिलाफ सीधे और बड़े पैमाने पर शस्त्र-युद्ध छेड़ दिया जाए. आप तो जानते हैं कि हमारे पास अस्त्र-शस्त्रों की कमी है. इस कमी की पूर्ति हम जापानियों से हथियार खरीदकर करेंगे. हथियारों की खरीद के लिए हमें पैसों की ज़रूरत है, इसलिए दक्षिण-पूर्वी एशिया में बसने वाले जितने देश-प्रेमी लोग हैं विशेषकर धनाढ्य उनसे मेरा आग्रह है कि वे खुलकर दान दें ताकि वे जल्द से जल्द जंग छेड़ दें. मैं तो टोटल मोबिलाइज़ेशन चाहता हूँ.”
(क्रमशः…)
कर्नल की डायरी: आखिर यह सब कैसे हुआ? (पन्ना 7)