
श्याम रजक बिहार की राजधानी पटना से लगभग 7 किलोमीटर पश्चिम फुलवारी शरीफ़ विधान सभा से पांच बार विधायक रहे हैं. 1995 से उनकी जीत का सिलसिला शुरू हुआ तो एक बार ही वह सिलसिला टूटा जब वह पहली बार राजद छोड़ कर जद यू में गए थे.
रविवार को उन्हें जद-यू से निष्कासित किया गया या फिर उनकी ज़बानी उनहोंने जद यू छोड़ा क्योंकि वह वहां सहज महसूस नहीं कर रहे थे. सोमवार को वह अपनी पुरानी पार्टी राजद में आ गए. जब उन्हें निष्कासित किया गया तब वह बिहार सरकार में उद्योग मंत्री थे. इससे पहले भी वह कई मंत्री पद पर रहे.
श्याम रजक की राजनैतिक यात्रा वर्तमान भाजपा सांसद राम कृपाल यादव के साथ शुरू हुई. राम कृपाल यादव जब राजद से पटना के एमपी होते थे तब श्याम रजक उनके सहायक के तौर पर उनके साथ रहते थे. श्याम रजक को लालू से करीब लाने वाले भी राम कृपाल ही थे.
श्याम रजक पहली बार लालू के चहेते तब बने जब लालू के चारा घोटाला में जेल जाने के खिलाफ राज्य स्तरीय आन्दोलन हो रहे थे. श्याम रजक उस आन्दोलन में पूरी सक्रियता के साथ जुटे थे.
फुलवारी शरीफ़ माय समीकरण का गढ़
फुलवारी शरीफ़ अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित है लेकिन यहाँ मुस्लिम और यादव वोट निर्णायक है. श्याम रजक एक के बाद दुसरे कार्यकाल में माय समीकरण से ही जीतते रहे. श्याम राजक को अनुसूचित जाति का खासकर धोबी जाति का भी वोट मिलता रहा.
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फुलवारी शरीफ़ विधान सभा में श्याम रजक निस्संदेह अपनी सादगी के कारण लोकप्रिय रहे और वह जीतते भी रहे.
इस बार शायद ही वह जीतें
श्याम रजक के राजद में शामिल होने पर राजद फुलवारी शरीफ के राजद कार्यकर्ताओं में कोई जोश नहीं बल्कि निराशा है. फुलवारी शरीफ़ में राजद के एक वरिष्ठ कार्यकर्त्ता ने बताया कि श्याम रजक की राजनीति अवसरवादी राजनीति है. जब राजद डूब रहा था तब उनहोंने राजद को छोड़ दिया आज नीतीश डूब रहे हैं तो उनहोंने नीतीश को छोड़ दिया.
उनका कहना था कि जब 2015 का चुनाव था तब श्याम राजक राजद गठबंधन से चुनाव लड़ रहे थे लेकिन राजद के कार्यकर्ताओं को उनहोंने अपमानित ही किया. इस बार अगर उन्हें यहाँ से टिकट मिलता है तो शायद ही वह जीत पाएं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बार गठबंधन को फुलवारी शरीफ विधान सभा कांग्रेस को देना चाहिए और कांग्रेस को संजीव प्रसाद टोनी को यहाँ से लडवाना चाहिए. संजीव प्रसाद टोनी फुलवारी शरीफ से तीन बार कांग्रेस के विधायक रहे हैं.
फुलवारी शरीफ की आम जनता भी इस बार रजक से खुश नहीं नज़र आ रही है. फुलवारी शरीफ़ के एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि श्याम रजक 25 साल में अपने विधान सभा क्षेत्र को एक कॉलेज भी नहीं दे पाए. सरकारी हाई स्कूल की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई. लडकियों का कोई स्कूल यहाँ नहीं है. हालांकि श्याम रजक के लिए यह कोई मुश्किल नहीं थे क्योंकि वह हमेशा सत्ताधारी पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्य रहे हैं.
फुलवारी शरीफ में एक भी ढंग का खेल का मैदान नहीं है. न ही कोई पार्क है. फुलवारी शरीफ का दक्षिणी इलाका हमेशा जलमय रहता है इस पर कोई समाधान नहीं निकला.
फुलवारी शरीफ़ के एक अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ता ने बताया कि फुलवारी का मुख्य राजमार्ग के किनारे जो लो लैंड एरिया है वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के विरुद्ध परत परत जोड़ कर बनती रही और जनता की गाढ़ी कमाई से बनाए गए घर पानी में और अधिक डूबते गए लेकिन इस पर श्याम रजक ने कोई काम नहीं किया. इसके बावजूद कि उन्हें इसके लिए कई बार ध्यान दिलाया गया.
फुलवारी शरीफ के एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि फुलवारी शरीफ सांप्रदायिक तनाव का गढ़ बना रहता है. अभी हाल ही में सीएए और एनआरसी विरोध के दौरान दो गुटों की भीडंत में कई घायल हुए और कई की जान चली गयी. उनका कहना है कि इस बार के सांप्रदायिक तनाव में रजक की बहुत ही संदिग्ध भूमिका रही.
एक महिला कार्यकर्त्ता ने कहा कि श्याम रजक को सत्ता चाहिए, पार्टी और लोगों की समस्याएँ उनके लिए कोई मायने नहीं रखता.
फुलवारी शरीफ़ में एम्स, महावीर कैंसर संस्थान, सुधा डेयरी प्रोजेक्ट, जल एवं भू प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) जैसे बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थान हैं लेकिन यहाँ की दशा 25 सालों में अब तक नहीं बदली.