
-मोहम्मद मंसूर आलम
जब जब मेरे मन में एक आदर्श देश का ख्याल आता है तो मैं रविन्द्र नाथ टैगोर की कविता गुनगुनाता हूँ. रवीन्द्र नाथ टैगोर की यह कविता मुझे बेहद अज़ीज़ है. अज़ीज़ इसलिए कि इसमें एक ऐसे भारत की कल्पना है जिसका सपना भगत सिंह ने भी देखा, सुभाष बाबू ने भी देखा, गांधी जी, आज़ाद, नेहरु और तमाम आज़ादी के दीवाने ने देखा था. रविन्द्र नाथ टैगोर की यह कविता प्रार्थना है लेकिन एक बहुत ही आदर्श और समृद्ध भारत की जब कल्पना की जाए गी तो इस कविता का संदर्भ भूला नहीं जा सकता. इस कविता की कसौटी पर हम देशभक्तों और देश के गद्दारों की पहचान कर सकते हैं. देशभक्तों और देश के गद्दारों की पहचान कपड़ों से कतई संभव नहीं है. देश भक्तों की पहचान का पैमाना बस एक ही है वह कैसे देश की कल्पना करता है. डरा हुआ देश. हिंसा से जूझ रहा देश, चरमराती इकॉनमी वाला देश, बेरोज़गारी वाला देश, कुतर्क करने वाले लोगों से भरा हुआ देश या फिर निर्भय देश, शांत देश, खुशहाल इकॉनमी वाला देश, रोज़गार देने वाला देश, तर्क के साथ अपनी बात रखने वालो का देश.
ऐसे ही देश की कल्पना गुरुदेव ने अपनी इस प्रार्थना में आज़ादी से पहले की थी. आइए इस कविता को समझते हैं फिर इस आधार पर हम तय करते हैं कि देश का भक्त कौन और देश का गद्दार कौन. अलबत्ता इस कविता की कसौटी पर न उतरने वालों को हम न गद्दार कहेंगे और न ही उन्हें गोली मारेंगे. उन्हें देश की तरक्की के लिए मुख्य धारा में लाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे. तो यह है कविता:
Where the mind is without fear and the head is held high
जहाँ मन भय से मुक्त और माथा गर्व से ऊँचा हो
Where knowledge is free
जहाँ ज्ञान सुलभ और सहज हो
Where the world has not been broken up into fragments
By narrow domestic walls
जहाँ देश अलग अलग तरह ही दीवारों में बंटा न हो
Where words come out from the depth of truth
जहाँ शब्दों में सच्चाई की गहराई हो
Where tireless striving stretches its arms towards perfection
जहाँ लक्ष्य आदर्श की प्राप्ति और इसके लिए अथक प्रयास करने की चाहत हो
Where the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert sand of dead habit
जहाँ तर्क अपना रास्ता भटक कर
बेकार की रस्मों रिवाजों के मरुस्थल में न गुम हो जाए
Where the mind is led forward by thee
Into ever-widening thought and action
into that heaven of freedom, my Father, let my country awake
हे प्रभु, हमारे मन में हमेशा
विचारों और उद्यमों का प्रसार होता रहे,
हमारा मन स्वतंत्रता के स्वर्ग में विचरे,
हे प्रभु, मेरे देश में चेतना आए.
क्या आप और हम गुरुदेव की इस कविता के आधार पर एक आदर्श देश की परिकल्पना कर सकते हैं. क्या हमारे लिए यह जानना मुश्किल है कि देश के असल गद्दार वह हैं जो इस देश में भय का माहौल पैदा कर रहे हैं, जो इस देश में पढने की आज़ादी छीन रहे हैं, जो शिक्षा को दुर्लभ और जटिल बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जहाँ तर्क की जगह कुतर्क ने ले लिया है, जहाँ परमाणु हमले से रक्षा करने के लिए गाय के गोबर के लेपन की सलाह दी जा रही है.
(यह मोहम्मद मंसूर आलम के फेसबुक अकाउंट से साभार है. इस पर द मॉर्निंग क्रॉनिकल का न कोई अधिकार है न ही कोई दायित्व.)