लोकसभा चुनाव 2019 का किंग मेकर कौन?




नवेद अख्तर

अभी तक के समीकरण  से ऐसा लगता है की किसी भी गठबंधन को 2019 के लोक सभा चुनावों में बहुमत नहीं मिलने वाला है।  ना UPA और ना ही NDA — दोनों का 272 का आंकड़ा पार करना मुश्किल है। अब सवाल यह पैदा होता है कि वो कौन सी पार्टियां हैं जो किंग मेकर साबित हो सकती हैं? और उनकी क्या दुविधाएं हो सकती हैं?

जो पार्टियां इन गठबंधनों से अलग चुनाव लड़ रही हैं उन में से कुछ ऐसी हैं जिनको कुछ सीटें जीतने की उम्मीद है और उन का NDA  को समर्थन करना लगभग नामुमकिन है जैसे की वाम दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी.  लेकिन कुछ पार्टियां ऐसी हैं की जो NDA को समर्थन दे सकती हैं जैसे की तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्रीय समिति, YSR कांग्रेस और तेलगु देशम पार्टी.

इन पार्टियों में सब से ज़्यादा समस्या बीजू जनता दल को हो सकती है  क्योंकि वो कांग्रेस और बीजेपी से त्रिकोणीय मुक़ाबले में जूझ रही है। कांग्रेस विरोधी विचारधारा में यह पनपी और परवान चढ़ी है। यह पहले भाजपा से गठबंधन कर के छोड़ चुकी है। क्योंकि भाजपा ने इस के ही वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया था। आज की स्थिति में ओडिश में भाजपा नंबर 2 पर आ सकती है और नवीन पटनायक के लिए कांग्रेस से बड़ी चुनौती बनती जा रही  है। नवीन पटनायक एक समझदार राजनेता हैं और उन्हें इस बात का अंदाज़ा हो गया था की अगर वो भाजपा के साथ गठबंधन बरक़रार रखते हैं तो उनका भी वही हाल होगा जो बहुत सी दूसरी पार्टियों का हुआ है। जैसे वर्तमान में असम की असम गन परिषद्, कर्णाटक की जनता दल सेक्युलर, गोवा की महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, हरियाणा की हरियाणा विकास पार्टी, महाराष्ट्र की शिव सेना और अगर पीछे जाएँ तो जनता पार्टी, जनता दल के दुसरे टुकड़े सब ही के वोट बैंक को भाजपा ने अपने में शामिल कर के कुछ पार्टियों को तो लगभग ठिकाने लगा दिया है और कुछ उस के रहमो करम पर ज़िंदा हैं और भाजपा उन के लिए गरम निवाला बन गयी है। वैसे भी बीजू जनता दल ने अपने आप को किसी भी गठबंधन से दूर ही रखा है चाहे वोह ममता बनर्जी की पहल हो, चंद्र बाबू नायडू की कोशिश, के सी आर का आह्वान हो या मुलायम सिंह यादव का प्रयत्न एक प्रकार के राजनैतिक एकांत में रहते हैं नवीन।

सूरत-ए- हाल कुछ ऐसी बनती जा रही है की यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है की अब अगर बीजू जनता दल को चुनना पड़ा तो वह किस को चुनेंगे एक तरफ कांग्रेस का कुआँ और दूसरी तरफ भाजपा की खाई।

ओड़िसा के पडोसी राज्य आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम और YSRCP दोनों प्रमुख पार्टियां किसी गठबंधन में शामिल नहीं हैं लेकिन तेलगु देशम पहले NDA का हिस्सा रह चुकी है। हालाँकि अभी उस ने इलेक्शन का मुख्य मुद्दा आंध्र प्रदेश को केंद्रीय सरकार का स्पेशल स्टेटस  का दर्जा नहीं देना बना रखा है।  इस से एंटी इन्कम्बन्सी (anti incumbency) को वह बीजेपी की तरफ मोड़ कर अपना पल्ला झाड़ना चाहती है। कितनी कामयाबी उस को मिलती है यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन अगर तेलगु देशम को मौक़ा मिला तो वह अपना फायदा देख कर किसी भी गठबंधन को सपोर्ट कर सकती है।

वहीँ दूसरी तरफ YSRCP का झुकाव NDA की तरफ होना स्वाभाविक है क्योंकि जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस से नाराज़ हैं और इसी लिए उन्हों ने कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी बनायीं और वो तेलगु देशम को मात भी दे सकती है। अगर पूरे देश में UPA की सीटें ज़्यादा आयीं और आंध्र प्रदेश में YSRCP की सीटें भी ज़्यादा आयीं तो शायद YSRCP भी UPA को सपोर्ट कर सकती है। हालाँकि अगर देखा जाये तो वोह NDA को सपोर्ट करना ज़्यादा पसंद करेंगे क्योंकि कांग्रेस और YSRCP का वोटाधार एक जैसा है और कांग्रेस उस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। हालांकि ऐसा होगा  नहीं क्योंकि कांग्रेस एक संगठित पार्टी नहीं है और भाजपा की तरह सतर्क और चालाक भी नहीं। लेकिन सारी राजनीती भय और लालच से ही चलती है। इस लिए आंध्र प्रदेश के दोनों दल दोनों गठबंधनों के लिए एक अवसर है।

तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति का मुक़ाबला कांग्रेस से है। राज्य में हुए विधान सभा चुनावों के नतीजों और आज तक की ज़मीनी स्थिति के आधार पर यह समझा जा रहा है कि यहाँ टीआरएस ज़्यादा तर सीटें जीत जायेगी। टीआरएस पहले कांग्रेस की सहयोगी रह चुकी है और कांग्रेस के जनाधार को हथिया चुकी है। भाजपा से उसे फ़िलहाल कोई डर नहीं और वह NDA का समर्थन कर सकती है वहीँ दूसरी और अगर UPA के गठबंधन की सरकार बनती नज़र आती है तो TRS को इस का भी समर्थन करने में दुविधा नहीं होगी खास तौर पर ऐसी स्थिति में जहाँ TMC, SP और BSP भी सरकार का हिस्सा हों। KCR यह भी भली भांति समझता है कि कांग्रेस उस के वोट बैंक पर क़ब्ज़ा नहीं जमा पाएगी।

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होगी इसमें कोई संदेह नहीं। यह भी लगभग तय  है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी बड़ी पार्टी होगी। ममता बनर्जी किसी पर विश्वास नहीं करती ऐसा समझा जाता है। वह NDA का हिस्सा भी रह चुकी है। आज के सन्दर्भ में उसे सिर्फ भाजपा से खतरा है और वोह NDA को समर्थन नहीं करेगी। लेकिन अगर किसी अकस्मात कारण से वाम पार्टियां ज़्यादा सीटें जीत जाती हैं और भाजपा तीसरे स्थान पर रहती है तो फिर ममता क्या करेगी यह अनुमान लगाना मुश्किल है।

उपरोक्त व्याख्यान की बुनियाद पर सबसे कठिन चुनौती नवीन पटनायक, फिर जगन मोहन रेड्डी,  फिर ममता बनर्जी की होगी कि NDA या UPA  में किसको चुनें। लेकिन इन सभी पार्टियों को यह बात भी याद रखनी होगी कि भाजपा अपने सहयोगी दलों को चट कर जाती है और डकार भी नहीं लेती।

(नवेद अख्तर गुडगाँव में रहते हैं और फिल्म मेकर हैं.)

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