बिहार: मंजू वर्मा के केस का स्पीडी ट्रायल आवश्यक क्यों?




बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा पुलिस की हिरासत में (फ़ाइल फ़ोटो)

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की पहली कैबिनेट बनी ही थी कि मेवालाल चौधरी को लेकर राजनैतिक विपक्ष से लेकर नागरिक विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया. नतीजतन, मेवालाल चौधरी को इस्तीफा देना पड़ा. मेवालाल चौधरी के मंत्री बनने के ख़िलाफ़ सबसे पहले आवाज़ उठाने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास मेवालाल के इस्तीफे को लेकर इस बात से संतुष्ट हैं कि उनहोंने एक आरोपित घोटालेबाज से बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मुक्त कर दिया. ज्ञात रहे कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था पहले से विवादों के दायरे में है. कई मीडिया रिपोर्ट्स से यह पता चलता है कि भाजपा और जदयू काल में बिहार की शिक्षा व्यवस्था रसातल में चली गयी है.

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अमिताभ कुमार दास ने मेवालाल चौधरी पर न केवल इस बात के लिए आरोप लगाया है कि वह घोटालेबाज़ हैं बल्कि बिहार के डीजीपी को पत्र लिख कर यह भी कहा है कि मेवालाल चौधरी की पत्नी की रहस्यमय मृत्यु की जांच की जानी चाहिए. उनहोंने पत्र में लिखा है कि उनकी सूचना के अनुसार चौधरी की मौत अकस्मात नहीं बल्कि नियोजित थी. हालाँकि अपने पत्र में उनहोंने मेवालाल चौधरी को इसका ज़िम्मेदार नहीं बताया है. फिर भी अमिताभ कुमार दास को मेवा लाल चौधरी की ओर से क़ानूनी नोटिस मिली है. नॉटिस को अपने क्लाइंट की तरफ से पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बैद्यनाथ ठाकुर ने भेजा है. नोटिस जारी करने से ऐसा लगता है कि मेवालाल अपनी पत्नी की मृत्यु की जांच की बात को हवा नहीं देना चाहते.

खैर, इस नोटिस से विचलित हुए बिना अमिताभ कुमार दास ने अब अपना निशाना मंजू वर्मा पर साधा है. राज्य के डीजीपी को पूर्व अधिकारी ने लिखा है कि मंजू वर्मा के केस में स्पीडी ट्रायल कराया जाए.

उनहोंने राज्य के मुख्यमंत्री पर सीधे सीधे निशाना साधा है और कहा है कि मंजू वर्मा के केस में स्पीडी ट्रायल को मुख्य मंत्री कुमार रोक रहे हैं. स्पीडी ट्रायल होने के बाद मंजू वर्मा को सज़ा मिलेगी और वह चुनावी राजनीती नही कर पाएंगी.

क्या है मंजू वर्मा का मामला?

मंजू वर्मा का मामला अप्रत्यक्ष तौर पर बिहार के पिछले दशक के सबसे घृणित अपराध से जुड़ा हुआ है. यह मामला मुज़फ्फरपुर के आश्रय गृह कांड से जुड़ा है. जहाँ लड़कियों को आश्रय देने के नाम पर उनके साथ बलात्कार किया जाता था.

आश्रय गृह से जुड़े मामले में बिहार में मुज़फ्फरपुर के अलावा पटना में भी ऐसी वारदात होने की पुष्टि हुई थी. पटना के आसरा गृह की दो लड़कियां पीएमसीएच में मृत भेज दी गयी थीं जिनमें एक का अंतिम संस्कार भी आनन फानन कर दिया गया था. इस संस्था पर सेक्स रैकेट चलाने का आरोप लगा था. इस संस्था की संचालिका मनीषा दयाल के तत्कालीन जदयू नेता श्याम रजक सहित कई दिग्गज नेताओं से दोस्ती के फ़ोटो भी वायरल हुए थे.

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मंजू वर्मा इन सब अपराध की एक कड़ी है. कड़ी इसलिए कि वह बिहार में समाज कल्याण की मंत्री थीं जिनके अंतर्गत ऐसी सभी संस्थाएं आती हैं. बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री के पति पर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर की मदद करने का आरोप लगा था. आरोप सीधे सीधे ब्रजेश ठाकुर ने लगाया था. मुज़फ्फरपुर बालिका गृह को मंजू वर्मा के मंत्रालय से अनुदान भी मिले थे और उनके पति ब्रजेश ठाकुर के अच्छे दोस्त माने जाते थे.

इसी क्रम में जब सीबीआई ने उनके पति को खोजने के लिए उनके घर बेगुसराय के चेरिया बरियारपुर में छापे मारे तो सीबीआई को अवैध तरीके से रखी बंदूक की 50 गोलियां मिली थी. सीबीआई ने इसी मामले में उन पर एफ़आईआर किया था. काफी मुशक्कत के बाद और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार पुलिस के निकम्मेपन पर टिप्पणी के बाद आख़िरकार पहले मंजू वर्मा के पति और बाद में मंजू ने खुद का समर्पण किया था. मंजू ने बेगूसराय के मंझौल मंडल के न्यायालय में समर्पण किया था. जदयू ने तब उन्हें बर्खास्त भी किया था.

आत्मसमर्पण के बाद पुलिस ने उन्हें स्थानीय कोर्ट में पेश किया जहाँ से उन्हें पहली दिसंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

मंजू वर्मा जेल से निकलने के बाद सबसे पहले नीतीश कुमार से उनके आवास पर मिली थीं.

आखिर क्यों चाहते हैं पूर्व आईपीएस अधिकारी स्पीडी ट्रायल?

अमिताभ कुमार दास ने अपने पत्र में कहा है कि अगर मंजू वर्मा पर स्पीडी ट्रायल हुआ होता तो कम से कम उन पर आर्म्स एक्ट में दोष सिद्ध हुआ होता और उन्हें सज़ा हुई होती और फिर वह चुनावी राजनीति नहीं कर पाती.

द मॉर्निंग क्रॉनिकल के पास पूर्व आईपीएस अधिकारी का वह पत्र उपलब्ध है.

ज्ञात रहे कि मंजू वर्मा को जद यू ने निष्कासित कर दिया था फिर भी वह जेल से निकलने के बाद राजनीति में सक्रीय रहीं. बल्कि उनहोंने 2019 के लोक सभा चुनाव में गिरिराज सिंह के साथ मंच भी साझा किया और उनके लिए बेगुसराय में प्रचार भी किया.

2020 में नीतीश कुमार ने इन सबके बावजूद उन्हें अपनी पार्टी का चेरिया बरियारपुर से उम्मीदवार बनाया. यह अलग बात है कि इस बार वह वहां से बुरी तरह से हार गयीं.

अमिताभ कुमार दास

यह कैसी बर्खास्तगी?

नीतीश कुमार की पार्टी के दो लोगों का मामला सामने आया है. दोनों ही पर संगीन मामले हैं. दोनों ही को जद-यू ने बर्खास्त भी किया लेकिन दोनों को फिर से पार्टी ने न केवल अपनाया बल्कि उन्हें 2020 के विधान सभा चुनाव में टिकट भी दिया. मेवालाल तारापुर से जीत गए लेकिन मंजू वर्मा चेरिया बरियारपुर से हार गयीं.

सवाल यह उठता है कि जिस तरह से शिक्षा के घोटालेबाज़ को शिक्षा मंत्रालय मिल गया ठीक उसी तरह से क्या मंजू वर्मा को भी कोई मंत्रालय मिल गया होता?

इस पर जो अमिताभ दास के तर्क है उससे साफ़ है कि ऐसा अवश्य ही होता. और इसीलिए नेताओं पर जब आरोप लगे तो उसका ख़ास कर स्पीडी ट्रायल होना ही चाहिए. ताकि राजनीति स्वच्छ लोगों की कार्यस्थली बनी रहे नाकि गुंडों की शरणस्थली.

अमिताभ दास कहते हैं कि यह नीतीश का जातीय मोह है.

कौन हैं अमिताभ दास?

अमिताभ कुमार दास का जन्म दरभंगा ज़िले में हुआ. वह 1994 बिहार कैडर के आईपीएस हैं. उनहोंने बिहार के कई जिलों में एसपी और एसएसपी का पदभार संभाला है और तस्लीमुद्दीन से ले कर ददन पहलवान, अनंत सिंह और गिरिराज सिंह से लेकर नीतीश कुमार सबके खिलाफ कार्यवाई के लिए जाने जाते हैं.

नीतीश कुमार के रेल मंत्री काल में ही जब अमिताभ दास रेल एसपी थे तब उनहोंने केंद्र को रेल ठेकेदार माफिया से नीतीश की सांठ गाँठ को लेकर सूचित किया था.

मानवधिकार आयोग में एसपी थे तब उनहोंने गिरिराज सिंह के प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के साथ गिरिराज के रिश्ते को उजागर किया था और सिंह के खिलाफ जांच की मांग की थी.

इसी तरह बक्सर, मोकामा और किशनगंज में पद संभालते हुए उनहोंने वहां के बाहुबली विधायकों की अच्छी खबर ली थी.

अमिताभ कुमार दास को 2018 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की अनुशंसा के साथ ज़बरदस्ती समाज हित का कारण देते हुए रिटायर कर दिया. अमिताभ दास इसके खिलाफ क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

अमिताभ कुमार दास ने अविवाहित रह कर समाज और देश की सेवा को अपना ध्येय बनाया. उनका पूरा परिवार अमेरिका में बसा है लेकिन अमिताभ बहुत सादगी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं और राजनीति के अपराधीकरण पर अपनी पैनी नज़र रखते हैं.

वह अभी अनौपचारिक तौर पर एक अराजनैतिक संगठन बिहार विप्लवी परिषद के गठन पर काम कर रहे हैं.

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