क्यों दिलचस्प बनता जा रहा है बेगुसराय?




राजद प्रत्याशी डॉ तनवीर हसन

-मोहम्मद मंसूर आलम

बेगुसराय में त्रिकोणीय मुक़ाबला है. बेगुसराय के दो मज़बूत दावेदारों में अगर पीछे के आंकड़ो के आधार पर कहा जाए तो गिरिराज सिंह और तनवीर हसन आमने सामने हैं. गिरिराज सिंह भाजपा के फायरब्रांड नेता (वीज़ा मंत्री भी कुछ लोग कहते हैं) है एनडीए के टिकट पर यहाँ से लड़ रहे हैं. अभी वह नवादा के सांसद हैं लेकिन वहां से उन्हें टिकट नहीं मिला. दिल्ली से बेगुसराय तक हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद आखिर उनकी हार हुई और ‘न से हाँ भला’ पर भरोसा करके आखिर में वह एनडीए नेतृत्व के आगे झुक गए. हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि गिरिराज सिंह को नवादा से हटाकर बेगुसराय लाने में नीतीश कुमार का बड़ा हाथ है. यह पक्का नहीं कि ऐसा उनहोंने क्यों किया लेकिन एक अटकल के अनुसार ऐसा इसलिए हो सकता है कि नीतीश गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे सांप्रदायिक नेताओं को बिहार में फलने फूलने नहीं देना चाहते.

दूसरी तरफ तनवीर हसन हैं. तनवीर हसन ने मिथिला विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की है और उनके नाम के आगे डॉ भी लगा है. डॉ तनवीर हसन के बारे में कहा जाता है कि वह ज़मीनी नेता हैं और लोगों के दुःख सुख में शरीक रहते रहे हैं. डॉ हसन पिछली बार मोदी लहर में भी हार कर जीते थे. उनके और उनके प्रतिद्वंदी भाजपा के उम्मीदवार भोला सिंह में बहुत कम का फासला रहा था. तनवीर हसन के समर्थक कहते हैं कि अगर सीपीआई ने तनवीर हसन को सपोर्ट कर दिया होता तो वह 2014 में ही सांसद बन गए होते.

इन दोनों के बीच राजनीति का नया लेकिन जुझारू चेहरा कन्हैया कुमार हैं. इनके पास भी तनवीर की तरह डॉक्टरेट की डिग्री है. कन्हैया ने जेएनयू से यह डिग्री ली है और वहां के छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने जा चुके हैं. डॉ कन्हैया तब चर्चा में आए जब उन पर अफज़ल गुरु की फांसी की बरसी पर कुछ देश विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा. कन्हैया पर देश द्रोह का आरोप लगा. वह जेल गए और अदालत की परिसर में काले कोट में संघ के गुडों ने उनकी पिटाई भी की. एक पत्रकार ने बताया कि पटना में कन्हैया पुतला दहन में आगे आगे रहते थे. उस पत्रकार ने अपनी शेखी बघारते हुए कहा कि “उसी से हमलोग पुतला दहन करवाते थे.” इसमें कोई संदेह नहीं कि कन्हैया का जीवन संघर्ष से भरा है. जेल से छूटने के बाद मोदी के खिलाफ देश में लहर तैयार करने में उनका भी छोटा ही सही योगदान रहा. अपने कार्यक्रमों में वह लगातार राहुल गांधी के नारे “चौकीदार चोर है” लगाते और लगवाते रहे.

पिछले वामपंथी नेताओं की तरह कन्हैया कुमार का प्रोफाइल बहुत अलग हैं. इसलिए इनके जीतने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

प्रत्याशियों का डिजिटल कनेक्ट

टीआरपी मीडिया कन्हैया की दीवानी है. हो भी क्यों न जब कन्हैया बोलते ही ऐसे हैं! कन्हैया के पास बोलने की शैली ने उन्हें मीडिया का चहेता बनाया है. अगर यूट्यूब पर भाषणों की सूची बनाई जाए तो एक साल में कन्हैया इस मामले में मोदी को भी पछाड़ सकते हैं. उनके भाषणों के व्यूज बहुत ज्यादा हैं. इस मामले में बेगुसराय के दोनों उम्मीदवार कन्हैया के सामने फिसड्डी हैं. वाकपटुता में तनवीर साहब तीसरे नंबर पर हैं.

इसके अलावा, कन्हैया का डिजिटल कनेक्ट बहुत मज़बूत है. अगर फेसबुक पेज की बात करें तो कन्हैया के नाम पर कई फेसबुक पेज हैं जहाँ से कन्हैया को प्रोमोट किया जा रहा है. कन्हैया के आधिकारिक फेसबुक पेज को लगभग 4 लाख 80 हज़ार लोग पसंद करते हैं. और कई पेज और भी हैं जिस पर भी पसंद करने वाले लोगों की बड़ी संख्या है. कन्हैया ट्वीटर पर भी सक्रीय हैं. ट्विटर पर लगभग 5 लाख लोग कन्हैया को फॉलो करते हैं.

गिरिराज सिंह का भी फेसबुक और ट्विटर पर अकाउंट है. गिरिराज सिंह को फेसबुक पर ढाई लाख लोग फॉलो करते हैं. वहीँ ट्विटर पर इनका फॉलोइंग 10 लाख से ज़्यादा है. ट्विटर पर गिरिराज सिंह के फॉलोइंग का एक कारण उनका मंत्री होना भी हो सकता है. इसके अलावा उनका अपना नेटवर्क है.

दूसरी तरफ तनवीर हसन इस मामले में शून्य हैं. उनका एक फेसबुक पेज हैं जिसे लगभग 11 हज़ार लोग पसंद करते हैं. ट्विटर पर तनवीर का सत्यापित अकाउंट है लेकिन मात्र साढ़े तीन हजार फॉलोवर हैं.

तनवीर जिस पार्टी से हैं वहां सबका यही हाल है सिवाय लालू कुनबे के. इसका कारण यह हो सकता है कि राजद नेतृत्व नहीं चाहता कि उनके नेताओं की लोकप्रियता सीमित घेरे को फांदे. मैं यहाँ गलत भी हो सकता हूँ और इसकी वजह ढूँढने का कोई कारण भी मेरे पास नहीं है.

तनवीर हसन ने किया था कन्हैया का समर्थन

कन्हैया पर जब देश द्रोह का मामला चला था और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था तब तनवीर हसन ने अपने फेसबुक पेज से कन्हैया का ज़बरदस्त समर्थन किया था तब उन्हें शायद पता नहीं होगा कि यह लड़का उन्हें चुनौती देगा. समर्थन में उनहोंने कुछ यूं कहा था: “बेगूसराय के लाल कन्हैया के साथ घटी घटना बहुत निंदनीय है। चंद मिडिया कर्मीयों ने पैसों के लालच मे कन्हैया को “media trial” मे दोषी करार दे दिया। ऐसे media house पर कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है।

कन्हैया सहीत इनके अन्य साथियों के विरुद्घ देश द्रोह के आरोप के संबंध मे सरकार कोई सबुत अभी तक पेश नही कर सकी है। केवल मिडिया के फ़रज़ी आरोप के आधार पर अंतरराशट्रीए ख्याती प्राप्त संस्थान JNU को बदनाम किया जा रहा है ।

संघ परिवार की ये सोची समझी साजिश है ताकि रोहीत वेमुला के साथ दलित उतपीरण और उसके फलस्वरूप आत्महत्या के विरूद्घ मे एकजुट हो रहे देश का ध्यान मुल समस्या से हटाने के लिए देश द्रोह की फ़रज़ी कहानी बनाई जा रही है।”

बेगुसराय लोक सभा सीट दिलचस्प क्यों?

बेगुसराय की दिलचस्पी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुंबई से बॉलीवुड के एक मुस्लिम निर्देशक ने मुझसे फ़ोन कर बेगुसराय का हाल पूछा. जब मैंने यह बतया कि कन्हैया हार सकते हैं तो उनहोंने इसे सदमा देने वाली खबर बताया. उनहोंने तपाक से कहा कि “यार कन्हैया को जीतना चाहिए.”

इसी तरह मेरे एक मौलवी दोस्त ने कहा कि वह कन्हैया को ही वोट देंगे और बेगुसराय के 70-80 प्रतिशत मुस्लिम कन्हैया को ही वोट करने जा रहे हैं. यह मौलवी साहब बेगुसराय के बाशिंदा और वोटर दोनों हैं. मैंने उनसे पूछा कि तनवीर हसन को क्यों नहीं देंगे तो उनहोंने कहा कि तनवीर हसन के जीतने या नहीं जीतने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन कन्हैया के हारने और जीतने से फर्क पड़ेगा. उनहोंने कहा कि जिस तरह से उस बच्चे को प्रताड़ित किया गया उससे लोगों में उसके प्रति हमदर्दी की भावना आई है. वह बोलता भी शानदार है. संसद में वह दूसरा ओवैसी हो सकता है. वह अल्पसंख्यक की आवाज़ के साथ मजलूमों (पीडितों) की दमदार आवाज़ बन सकता है. उनहोंने कहा कि रोहित वेमुला और नजीब दोनों पर वह मुखर रहा.

बेगुसराय में लोगों की दिलचस्पी इसलिए भी है क्योंकि इस बार वहां का चुनाव जाति और धर्म से ऊपर उठ कर हो रहा है. भाजपा के उम्मीदवार और सीपीआई के उम्मीदवार दोनों भूमिहार हैं लेकिन जो वहां के लोगों से पता चलता है कि इस बार बेगुसराय के भूमिहार ख़ास कर भूमिहार महिलाऐं कन्हैया को ज्यादा वोट करेंगी. हालांकि भूमिहार पुरुषों का वोट गिरिराज को जा सकता है. यह तो पक्का है कि राजद के तनवीर हसन को इस जाति का वोट नहीं मिलने जा रहा है.

यादव वोट तीनों के बीच बंटने की संभावना है लेकिन ज्यादा वोट तनवीर हसन को पड़ सकता है. दलिट वोट भी बंट रहे हैं. इसमें बहुत थोडा वोट एनडीए को जा सकता है. सीपीआई का दलितों में कैडर वोट जो है वह मिलने की संभावना है. पिछड़े, अति पिछड़ों का वोट भी तीनों प्रत्याशी में बंट रहा है.

भाजपा पूरी कोशिश कर रही है कि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण हो जो अब तक नहीं लगता है. इसका एक कारण यह है कि बेगुसराय के अप्रवासी भूमिहार इस चुनाव को ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से फॉलो कर रहे हैं और वह चाहते हैं कि कन्हैया को ही भूमिहार वोट मिले. ऐसे ही एक अप्रवासी बेगुसराय के बाशिंदे का कहना है कि वह चाहते हैं कि कन्हैया ही इस सीट से जीते हालांकि वह केंद्र में मोदी को देखना चाहते हैं. उनका तर्क था कि एक सीट से कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन कन्हैया का यहाँ से जीतना ज़रूरी है. इन अप्रवासी लोगों का यहाँ के स्थानीय लोगों पर असर है. गिरिराज का बाहरी भूमिहार होना भी एक कारण है.

इन सबके बावजूद दिलचस्प यह भी है कि कन्हैया और तनवीर दोनों की आखरी उम्मीद मुसलमान वोट हैं.

मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण करने की भी कोशिश की जा रही है. इसकी कोशिश एक बार तब भी हुई थी जब जिग्नेश ने हिना शहाब के विरोधी सीवान से सीपीआई के प्रत्याशी अमर यादव के समर्थन में वोट माँगा था.

वह मामला अब शांत है और अब चार दिन शेष रह गए हैं जिसके अंदर कोई भी ध्रुवीकरण संभव नहीं है.

उम्मीद करते हैं कि वहां के मतदाता ज़ात और धर्म से उठकर इस बार सही उम्मीदवार को संसद भेजेंगे.

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