
पूर्व चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए जब भारत के राष्ट्रपति ने नामित किया तब कईयों की भौहें चढ़ गईं. उनके रिटायरमेंट के आस पास लिए जाने वाले निर्णयों पर जो बातें दब दब कर हो रही थीं वह अब मुखर हो गईं. चाहे ख़ास हो या आम उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाने लगे. लोग यह कहने लगे कि आखिर रंजन गोगोई खुद अपनी ही नसीहत पर अमल क्यों नहीं कर पाए.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने पूर्व चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की वह बात याद दिलाई जब उनहोंने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद सरकारी नियुक्तियां न्यायपालिका की आज़ादी पर धब्बा है.
Shri Ranjan Gogoi had himself said last year that “There’s a strong viewpoint that post-retirement appointments is a scar on independence of Judiciary”. What must one make of a govt that does this, after appointing another ex-Chief Justice as the governor of a state? #Chronology
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) March 16, 2020
येचुरी ने कहा कि “श्री रंजन गोगोई ने खुद ही पिछले साल कहा था कि लोगों का यह मज़बूत मत है कि रिटायरमेंट के बाद की नियुक्तियां न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर धब्बा है.”
गोगोई ने अपने कार्यकाल में कई बार न्यायपालिका के लिए पारदर्शिता और साख पर ज़ोर दिया था. पिछले साल, जब उनके ही अदालत की एक महिला कर्मचारी ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था तब उनहोंने बड़े प्रबल अंदाज़ में कहा था कि किसी न्यायाधीश की साख ही उसके लिए सब कुछ होता है. उनहोंने अपनी ईमानदाराना आचरण को बड़े पुरज़ोर ढंग से पेश करते हुए कहा था कि उनकी जो न्यायाधीश रहते हुए बचत है इसी से उनकी ईमानदारी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. उनका कहना था कि उनके चपरासी ने उनसे अधिक कमाया है।
लेकिन इन सबका असर तब ख़त्म हो गया जब उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया.
गोगोई के राज्य सभा के लिए मनोनीत होने के बाद उनके कई फैसलों को संदेह के घेरे में लाया जा रहा है. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा है कि उन्हें इस ख़बर से हैरानी नहीं हुई है. वह कहती हैं कि उनहोंने एनआरसी को हरी झंडी दी, राम मंदिर पर निर्णय दिया, जम्मू कश्मीर लॉक डाउन से संबंधित अर्ज़ी को सुनने से इंकार कर दिया और खुद पर यौन उत्पीड़न के मामले में खुद को क़ानून से ऊपर कर खुद को बचा लिया.
Fmr CJI Gogoi nominated to Rajya Sabha! Why am I not surprised?
Any propriety, Sir?
He directed NRC exercise
Ram Mandir in hurried hearings
Refusal to hear J&K habeas corpus
Immunity from law in own sexual harassment case
Politician or judge all along, ye Greedy Lord? pic.twitter.com/af3IdhSf1a— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) March 16, 2020
इस पर स्वराज्य इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने भी अपनी टिप्पणी भाजपा के दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के हवाले से किया है. उनहोंने भी इस हवाले से अप्रत्यक्ष तौर पर उनके निर्णयों को कटघरे में खड़ा किया है. उनहोंने कहा कि जेटली ने कहा था रिटायरमेंट से पहले के फैसले रिटायरमेंट के बाद की नौकरी की चाहत से प्रभावित होते हैं.
"Pre-retirement judgements are influenced by a desire for a post-retirement job,”
Arun Jaitley https://t.co/I6cAHerw8p— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) March 16, 2020
हालाँकि भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा कहते हैं कि गोगोई इस प्रस्ताव को ठुकरा देंगे. गोगोई के पास इस प्रस्ताव को स्वीकार करने या ठुकराने के लिए अभी छह महीने का समय है.
I hope ex-cji Ranjan Gogoi would have the good sense to say ‘NO’ to the offer of Rajya Sabha seat to him. Otherwise he will cause incalculable damage to the reputation of the judiciary.
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) March 16, 2020
सिन्हा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पूर्व चीफ जस्टिस को सद्बुद्धि आएगी और वह राज्य सभा की पेशकश को न कहेंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह न्यायपालिका की साख को बहुत नुकसान पहुंचाएंगे.
लेकिन ऐसा लगता नहीं है क्योंकि गोगोई ने गुवाहाटी में पत्रकारों से अपने आवास पर बातचीत में कहा कि वह बुधवार को दिल्ली जाएंगे और शपथ लेने के बाद मीडिया को विस्तार से बताएँगे कि वह राज्यसभा जा जा रहे हैं.
मतलब साफ़ है कि वह खुद की ही नसीहत नहीं मानेंगे और राज्य सभा की कुर्सी का मज़ा लेंगे.