
पटना (बिहार), 12 अक्टूबर | अगर आप पटना में रहते हैं या पटना के रहने वाले हैं तो आपको पता होना ही चाहिए कि पटना की मिटटी की परतों में कितना गर्व करने वाला इतिहास गर्भित है। पटना के कण कण में भारतीय होने का एहसास छिपा है। पटना विश्वविद्यालय जो कभी पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड कहा जाता है ने इसी वर्ष 1 अक्टूबर को अपना सौ साल पूरा किया है। इसका विशाल इतिहास है। इस विश्वविद्यालय ने राम धारी सिंह दिनकर जैसे कवि से लेकर सैयद शहाबुद्दीन, शत्रुघ्न सिन्हा, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, वर्तमान उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, वर्तमान भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद, बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा इत्यादि ने यहीं से पढाई कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया।
इस गौरवशाली इतिहास को लोगों तक पहुँचाने के लिए पटना में युवाओं ने अनोखी पहल करते हुए एक मानव श्रृंखला बनाई। इस मानव श्रृंखला को बनाने के पीछे लोगों को इसका इतिहास बताना और उन लोगों को याद करना जिन्होंने इसको पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड बनने में अपना योगदान दिया था। मानव श्रृंखला का निर्देशन करने वाले उमर अशरफ जो स्वयं 20 से 22 साल के युवा हैं ने मॉर्निंग क्रॉनिकल से बात-चीत में पटना विश्वविद्यालय के इतिहास का वर्णन इस तरह से किया:
1896 तक बिहार में मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कोई भी संस्थान नही था और कलकत्ता के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज मे बिहार के छात्रों को स्कालरशिप नही मिलता था। शिक्षा और सरकारी नौकरियों मे बहाली के मामलों पर बिहारी लोगों से बहुत ही नाइंसाफ़ी की जाती थी। इस तरह के व्यवहार से तंग आ कर महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंद किशोर लाल, राय बहादुर, कृष्ण सहाय, गुरु प्रसाद सेन, सच्चिदानंद सिन्हा, सैयद मोहम्मद फखरुद्दीन, अली ईमाम, मज़हरुल हक़ और हसन ईमाम 'बिहार' को बंगाल से अलग कराने के काम मे लग गए। जिसके बाद 22 मार्च 1912 को बिहार अस्तित्व मे आया। बिहार और उड़ीसा के लिए विश्वविद्यालय की सबसे पहली मांग मौलाना मज़हरुल हक़ ने 1912 मे की थी, उनका मानना था कि बिहार और उड़ीसा का अपना एक अलग विश्वविद्यालय होना चाहिए फिर इस बात का समर्थन सच्चिदानंद सिन्हा ने भी किया। पटना विश्वविद्यालय बिल को लेकर 1916 और 1917 के बीच लंबा संघर्ष चला। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटना विश्वविद्यालय बिल को ले कर बात हुई। इंपीरियल विधान परिषद मे 5 सितम्बर 1917 को इस बिल को पेश किया गया जिसमे वहां मौजुद लोगों से राय मांगी गई। 12 सितम्बर 1917 को इस बिल पर चर्चा हुई और मौलाना मज़हरुल हक़ द्वारा दिए गए समर्थन के कारण 13 सितम्बर 1917 को इस बिल को पास कर दिया गया। जहां राजेंद्र प्रासाद चाहते थे के पटना में क्षेत्रीय विश्वविद्यालय बने जहां स्थानीय भाषा में पढ़ाई हो वहीं सैयद सुल्तान अहमद पटना के विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय बनवाना चाहते थे और बात सुल्तान अहमद की ही मानी गई। शायद इसी बात को लेकर 1916 मे बड़ी संख्या मे छात्र पटना मे विश्वविद्यालय बनाने का विरोध कर रहे थे तब सैयद सुल्तान अहमद ने छात्रों से बात की और उन्हे संतुष्ट किया और इस तरह पटना विश्वविद्यालय के बनने का मार्ग खुल गया। पटना विश्वविद्यालय एक्ट 1 अक्टूबर 1917 को पास हुआ और इस तरह पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय वाईस चांसलर सैयद सुल्तान अहमद बने जो 15 अक्टूबर 1923 से लेकर 11 नवम्बर 1930 तक इस पद पर बने रहे। इनसे पहले दो अँगरेज़ जेंनिंग्स और जैक्सन इसके वाईस चांसलर थे। सुल्तान अहमद के ही दौर में पटना विश्वविद्यालय में पटना साइंस कॉलेज, पटना मेडिकल कॉलेज और बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज अस्तित्व मे आया जो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। ख़्वाजा मोहम्मद नूर दुसरे भारतीय वाईस चांसलर बने जो 23 अगस्त 1933 से 22 अगस्त 1936 तक इस पद पर रहे। पटना विश्वविद्यालय को स्थापित करने में अपना बड़ा किरदार अदा करने वाले सच्चिदानंद सिन्हा 23 अगस्त 1936 से 31 दिसम्बर 1944 तक इसके वाईस चांसलर रहे। उनके बाद सी.पी.एन. सिंह 1 जनवरी 1945 को पटना विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर बने और भारत की आज़ादी के बाद भी 20 जुन 1949 तक इस पद पर बने रहे। सी.पी.एन सिंह ने ही पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय मे की। पटना विश्वविद्यालय को अस्तित्व मे लाने मे अपना अहम रोल अदा करने वाले मोहम्मद फखरुद्दीन ने 1921 से 1933 के बीच बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए पटना विश्वविद्यालय के कई भवन और छात्रावास का निर्माण करवाया। बी.एन कॉलेज का नया भवन, उसका तीन मंज़िला छात्रावास, साईंस कॉलेज की नई ईमारत, उसका दो मंज़िला छात्रावास, इक़बाल हास्टल उन्ही की देन है। रानी घाट के पास मौजुद पोस्ट ग्रेजुएट हॉस्टल भी उन्होने ही बनवाया साथ ही पटना ट्रेनिंग कॉलेज की ईमारत भी उन्ही की देन है। इसी दौरान कई बिहार के कई राजा महराजा और नवाबो ने ज़मीन और पैसा दिया जिससे पटना विश्वविद्यालय के भवन और कार्यालय खुले।
मानव श्रृंखला में अजीत सिंह, परवेज़ आलम, सन्नी चौहान, ज़िशान शफ़ीक़, अयाज़ुल हक़, अभीषेक राज, कौसर रज़ा, शम्स वाजिद, रजनीश कुमार, मशकुर अहमद, शहनावाज़, शाहिद आलम, फैसल बाबर, फ़रदुल हसन, नेहाल अशरफ़, नफ़ीस अख़तर, नायाब आलाम सहीत पचास से अधिक की संख्या में छात्रों ने उपस्थिति दर्ज कराई, और कहा कि हम अपने गौरवशाली इतिहास को दुनिया को बताते रहेंगे।