
–समीर भारती
किसानों की प्रतिरोध यात्रा को मैं बहुत ध्यान से देख रहा था. मेरी नज़र में अपनी किताबों में छपी आज़ादी के पहले की कहानियां घूमने लगी थीं. मुझे सुबह सुबह जाड़े के एहसास के साथ उनका दर्द समझ में आने लगा था. मुझे पक्का विश्वास था कि लोगों का इतना बड़ा समूह किसी के बुलावे पर इस शुरूआती सर्दी में मीलों पैदल चल कर सत्ता की मार झेलने नहीं आ सकता था. यह उनका दर्द है जो उन्हें मीलों दूर सत्ता के गढ़ में ले आया है. शेर की मांद इसे नहीं कहते. शेर तो पेट भरने के लिए शिकार करता है. यह जो लोग हैं वह पेट की नहीं पेट पर शासन करने की हवस बुझाने के लिए यह सब कर रहे हैं. इन्हें आदमखोर भेड़िए कहना अतिश्योक्ति नही होगा. यह सब वही हैं.
मुझे दुःख इनसे भी नहीं होता जो सत्ता की मलाई खा रहे हैं. मुझे तो दुःख उनसे हुआ जो सोशल मीडिया पर अजीब चर्चा कर रहे थे. कोई कह रहा था कि किसान मरे तो मरे, वह किसानी छोड़ देगा तो क्या होगा? हम चावल, गेहूं आयात कर लेंगे.
कोई कह रहा था कि किसान के साथ तो मेरा समर्थन है क्योंकि मैं किसान का बेटा हूँ लेकिन किसानों के साथ राजनीति अच्छी बात नहीं है.
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यह वह लोग हैं जिन्हें मन्दिर की शिला ढोने की कारसेवा राजनीति नजर नहीं आती, यह वह लोग हैं जिन्हें भिक्षु सत्ताधारी की बहु बेटियों पर नाकाबंदी करना राजनीति नहीं लगता. यह वह लोग हैं जो अपनी ज़मीन बंजर छोड़ सकते हैं क्योंकि उनके पेट भरे हुए हैं. भारत में यही लोग हैं जिनका हृदय परिवर्तन ज़रूरी है. इन्हें नशा मुक्ति केंद्र की ब्लाक स्तर पर ज़रूरत है.
खैर जगह जगह जो दृश्य थे वह हतोत्साहित करने वाले नहीं थे वह मुझे प्रेरित कर रहे थे. तीन राज्यों की सत्ता द्वारा जगह जगह रोड़े अटकाने के बाद भी आखिर किसान दिल्ली पहुँच ही गए.
आइए सोशल मीडिया के माध्यम से देखते हैं कुछ तस्वीर और वीडियो:
इस ट्विटर यूजर ने सोनीपत से लेकर दिल्ली-हरियाणा कुंडली बॉर्डर तक किसानों को रोकने के प्रयासों को दिखाने वाले वीडियो शेयर किया है. हर वीडियो देखने के लायक है.
The #Farmers have broken through the #Sonipat barricade.
They pushed away the containers, filled the holes, removed cement structures & created a road despite police using water cannon. @mlkhattar is done now it’s @narendramod at the Delhi Haryana Kundli border. #DelhiChalo pic.twitter.com/POr9cXqBQJ— Anand Mangnale (@FightAnand) November 27, 2020
इन वीडियो को देखने के बाद ऐसा ही लगता है जैसे भाजपा-शासित राज्यों ने यह तय कर लिया था कि किसानों को किसी भी हाल में दिल्ली पहुँचने नही देना है. इन्होंने गोली और मिसाइल दागने के अलावा किसानों पर सारे हथकंडे उपयोग किए.
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दिल्ली आने वाले रास्तों में बॉर्डर पर पुलिस ने सड़क खोदी ताकि ट्रैक्टर पर सवार किसान आगे न बढ़ सकें. पुलिस ने सड़कों पर गड्ढे खोदने के अलावा भारी ट्रकों को बैरिकेड्स के रूप में भी खड़े किए जैसा आप ऊपर ट्विटर यूजर द्वारा शेयर किए गए वीडियो में देख सकते हैं. इनके अलावा कंटीले तारों से भी बैरिकेड्स किए गए.
किसान नेता योगेन्द्र यादव को भी रोका गया
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय सयोजक और किसानों की बात को वर्षों से प्रबल ढंग से उठाने वाले योगेन्द्र यादव को भी दिल्ली पुलिस ने रोका. यादव को हरियाणा पुलिस ने गुरुवार को हिरासत में लेने के बाद छोड़ दिया था. हिरासत से निकलने के बाद उनहोंने फिर से दिल्ली की तरफ चूक किया. और आखिरकार वह भी दिल्ली पहुंचे.
पुलिस ने कई पर केस भी दर्ज किया
बिहार में चुनाव कराने वाली और मध्य प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में उप चुनाव कराने वाली सरकारें जहाँ हजारों की संख्या में लोगों को संबोधित किया गया, जहाँ धड़ल्ले से COVID19 के नियमों का उल्लंघन किया गया अब वही सरकारें किसानों पर COVID19 के नियमों का उल्लंघन करने के मामले में एफ़आईआर कर रही है.
एक मामले में हरियाणा पुलिस ने एक किसान निकाय के नेता जय सिंह के बेटे नवदीप पर हत्या के प्रयास का एफ़आईआर किया है, जिसमें आजीवन कारावास, दंगों और सीओवीआईडी -19 नियमों के उल्लंघन का अधिकतम जुर्माना बन सकता है.
इनका अपराध केवल इतना था कि ठंड में किसानों पर पानी की बौछार करने वाली हरियाणा पुलिस के कैनन को इन्होने अपनी जान पर खेल कर बंद कर दिया. इस किसान के कारनामे को एक ट्विटर यूजर ने शेयर भी किया है
How a young farmer from Ambala Navdeep Singh braved police lathis to climb and turn off the water cannon tap and jump back on to a tractor trolley #farmersprotest pic.twitter.com/Kzr1WJggQI
— Ranjan Mistry (@mistryofficial) November 27, 2020
नवदीप ने मीडिया को बताया, “अपनी पढ़ाई के बाद, मैंने अपने पिता के साथ खेती करना शुरू किया जो एक किसान नेता हैं. मैं कभी किसी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त नहीं रहा और वाहन पर चढ़ने और टैप को बंद करने की हिम्मत मुझे प्रदर्शनकारी किसानों की प्रतिबद्धता से मिली क्योंकि यह उन्हें चोट पहुंचा रहा था, “
दिल्ली चलो के पीछे का क्या है मामला?
पंजाब-हरियाणा समेत छह राज्यों के करीब 500 संगठनों के किसान तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और केंद्र सरकार से उसके प्रावधानों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इसी को लेकर केंद्र सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाने के लिए किसानों ने यह रास्ता चुना जो बेहद कठिन था. सर्दी की रातों में भी किसान चल रहे थे. ऐसा पहली बार नहीं हुआ. पिछले वर्षों में भी केद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों को लेकर किसान धरना करते रहे हैं.
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इस बार केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ किसानों का गुस्सा उन तीन बिलों को लेकर है जिन्हें महामारी के बीच में तैयार किया गया है और इनमें से एक को मंगलवार को लोक सभा में पारित भी कर दिया गया.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, किसानों (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पेश किया, जो इससे संबंधित अध्यादेशों की जगह लेंगे.
इनमें से आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक लोकसभा से मंगलवार को पारित भी हो गया है.
क्यों हैं यह विधेयक किसान विरोधी?
विरोध कर रहे किसानों का आरोप है कि यह तीनों विधेयक किसानों को बंधुआ मज़दूर बना देंगे.
उनका कहना है कि अब मंडी समाप्त होने के बाद पशुधन और बाज़ार समितियाँ किसी इलाक़े तक सीमित नहीं रहेंगी. ऐसा होने से किसानों के बीच क़ीमत को लेकर प्रतिस्पर्धा होगा. खरीदार कम और बेचने वाले ज़्यादा होंगे. ऐसे में बिचौलिए को ही अधिक लाभ होगा और किसान घाटे में रहेंगे.
मुझे एक किसान ने कहा कि किसान अपना माल एक मंडी से दूसरी मंडी तक ले कर घूमता रहेगा कि किसानी करेगा?
उनका डर है कि इन नए विधेयक की वजह से बाज़ार समितियां जो अब तक सरकार के नियंत्रण में हैं का निजीकरण भी संभव हो जाएगा.
ठेके पर खेती के मामले में किसान संगठनों का कहना है कि जो कंपनी या व्यक्ति ठेके पर कृषि उत्पाद लेगा, उसे प्राकृतिक आपदा या कृषि में हुआ नुक़सान से कोई लेना देना नहीं होगा. इसका ख़मियाज़ा सिर्फ़ किसान को उठाना पड़ेगा. अब तक कहीं न कहीं किसानों को नुकसान होने पर सरकारी मुआवज़े भी मिलते आए हैं. ठेका प्रथा होने के बाद न ही यह मुआवज़ा उन्हें सरकार देगी और न ही इसका नुकसान कॉर्पोरेट उठाएगी. मतलब साफ़ है कि यह विधेयक किसानों की ज़िम्मेदारी उठाने से सरकार को बरी करने के लिए है.
जहाँ तक आवश्यक वस्तु अधिनियम का प्रश्न है जो मंगलवार को लोक सभा में पारित हो चुका है तो ज्ञात रहे कि इस विधेयक के आने के बाद अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया है.
इसका सीधा सीधा मतलब यह है कि इसका भंडारण अब जमाखोरी नहीं कहलाएगा और इन वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो सकती हैं. यह किसान से ख़रीद लिए जाएंगे और इनको महीनों और वर्षों तक भंडारण किया जाना संभव होगा.
ज्ञात रहे कि पहले इनका भंडारण जमाखोरी क़ानून के तहत कठोर अपराध था.