
पुस्तक: गोपालगंज से रायसीना – मेरी राजनीतिक यात्रा
लेखक: लालू प्रसाद यादव व नलिन वर्मा
पृष्ठ: 235
मूल्य: कई ऑनलाइन स्टोर पर 300 रूपए से भी कम
लालू यादव चारा घोटाला के आरोप में बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं. खराब स्वास्थ्य के कारण वह रिम्स में इलाजरत हैं. कई बार उनके वार्ड की जांच हो चुकी है. लोगों को शक है कि वह वहां से अपनी बेटे और पार्टी के लोगों को राजनीति के गुड़ सीखा रहे हैं. इधर इनकी आत्म कथा रूपा पब्लिकेशन्स द्वारा गोपालगंज से रायसीना – माय पोलिटिकल जर्नी प्रकाशित की गयी है जिसमें कई रोचक तथ्य हैं. यह किताब लोगों की धीरे धीरे उत्सुकता बढ़ा रही है.
इस किताब का प्रस्तावना सोनिया गांधी ने लिखा है और डॉ मनमोहन सिंह समेत कई दिग्गजों ने लालू प्रसाद के बारे में अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.
फुलवरिया के दिन
लालू प्रसाद का जन्म बिहार के एक गाँव फुलवरिया में हुआ. लालू कहते हैं कि मैं किस दिन पैदा हुआ, मेरे घर में किसी को नहीं पता. मां बोलती थीं – ‘हमरा नइखे याद कि तू अन्हरिया में जन्मला कि अंजारिया में.’ मनिपुर में ऊंची जाति की बहुतायत आबादी थी. अनेक युवा चिलम में गांजा भरकर पीते थे. इसके बाद उनमें दही और मलाई खाने की तलब रहती थी। मेरे पिताजी सिक्कों के बदले उनको दूध और दही देते थे. घर मिट्टी का था. कुछ बड़ा होने पर मैंने अपने को लंगोट में पाया. इसे मेरी कमर के निचले भाग और टांगों के बीच लपेट दिया जाता था. धान के पुआल का बिस्तर. मां, जूट के बोरे में पुआल, पुराने कपड़े और कपास को भरकर कंबल बनाती थी. सुबह का भोजन – ढेर सारा पानी मिला सतुआ होता था. रात का खाना-पानी में उबाला गया मकई. सूरज की किरण से समय का पता चलता था. चोर-सिपाही के खेल में मैं दारोगा बनता था. मुकुंद भाई मुझे पटना ले आए. वह रोज 11 आना कमाते थे. 10 किमी दूर कॉलेज जाने के लिए साइकिल तक नहीं थी.
व्हेन लालू मेट राबड़ी
मार्च 1974 का कोई दिन था जब राबड़ी मेरे घर फुलवरिया गौना करके आईं. तब मैंने उन्हें पहली बार देखा. साधारण से दुल्हन के कपड़े में राबड़ी बहुत ही शर्मीली और समझदार लगी थीं. मेरी शादी 1973 को वसंत पंचमी के दिन हुआ था. हमारे यहाँ रिवाज के अनुसार शादी के तुरंत बाद दूल्हा दुल्हन एक साथ नही रहते. गौना के बाद ही दोनों साथ रह सकते.
जब मैं उनसे मिला तब जेपी आन्दोलन चल रहा था. मैं उसमें सक्रीय था. मैंने उनसे कहा; “मैं बिहार में चल रहे एक बड़े आन्दोलन का नेता हूँ. जय प्रकाश नारायण हमारा नेतृत्व कर रहे हैं. मुझे 18 मार्च तक पटना पहुंचना है. नहीं पहुंचा तो मेरी बदनामी होगी. लोग कहेंगे कि मैं बिक गया हूँ. कुछ भी हो सकता है… मैं जेल भी जा सकता हूँ. मुझे तुम्हारे सहयोग की ज़रूरत है. राबड़ी इस पर कुछ नहीं बोलीं. यह पहली बार था जब मैंने उनसे कुछ बोला था. वह मितभाषी लगीं.
लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी
कोई इस पक्ष में नहीं था कि लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया जाए. सब यही चाहते थे कि रथ जैसे जा रहा है वैसे ही इसे जाने दिया जाए. तत्कालीन प्रधान मंत्री वी पी सिंह भी इस पक्ष में नहीं थे. केन्द्रीय गृह मंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने मुझे दिल्ली बुलाया और रथ यात्रा रोकने की योजना के बारे में पूछा. उनहोंने कहा कि आप अपने ऊपर इसे न लें. रथ को आगे जाने दें. मैंने इस का जवाब दिया: “आप सबलोगों पर सत्ता का नशा चढ़ा हुआ है.”
मेरे दिमाग में यह बात साफ़ थी कि मुझे आडवाणी की रथ यात्रा रोकनी है. मेरा मानना था कि रथ यात्रा अल्पसंख्यक समुदाय और सांप्रदायिक सद्भावना के लिए कड़ी चुनौती है. मैं अपना निर्णय करने बाद अपने घर के बेडरूम में राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया. मैंने उनसे कहा कि यात्रा को रोकनी है और आडवाणी समेत दिवंगत अशोक सिंघल और अन्य संघ परिवार और विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं को गिरफ्तार करना है.
पहले योजना यह थी सासाराम में केवल आडवाणी को गिरफ्तार किया जाए. एक हेलीकाप्टर वहां भेजा जाना था और आडवाणी को गिरफ्तार करके वहां से ले आना था. मैंने पायलट को बुलाया और उसे योजना समझाई. मैंने वहां उपस्थित लोगों को कहा कि यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए. लेकिन बात बाहर आ गयी. आडवाणी ने अपना रास्ता बदल लिया. इसके बाद फैसला हुआ कि आडवाणी को धनबाद में गिरफ्तार किया जाए. लेकिन वहां के प्रशासनिक अधिकारियों ने लॉ एंड आर्डर की दुहाई देकर ऐसा करने से इनकार कर दिया.
इसके बाद मैं ने वैकल्पिक योजना बनाया. मैंने तत्कालीन एक आईएस अधिकारी आर. के. सिंह (वर्तमान में आरा से सांसद और मोदी कैबिनेट में राज्य मंत्री) और डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल रैंक के आईपीएस ऑफिसर रामेश्वर ओरांव को अपने निवास 1, अणे मार्ग बुलाया और उनके साथ पूरी योजना पर चर्चा किया. उसके बाद मैंने मुख्य सचिव, गृह सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया और 9 अक्टूबर की शाम को स्पेशल आर्डर पास किया और आर के सिंह और ओरांव को समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.
मैं उस तारीख को रात भर नहीं सोया. मैंने समस्तीपुर के सरकारी गेस्ट हाउस के लैंडलाइन पर जहाँ आडवाणी ठहरे हुए थे 10 अक्टूबर 4 बजे फ़ोन लगाया. रसोइये ने फ़ोन उठाया. मैंने उसे अपना नाम नहीं बताया. मैंने उसे पूछा कि मैं एक रिपोर्टर बोल रहा हूँ. मैंने उस से पूछा कि आडवाणीजी क्या कर कर रहे हैं? उसने कहा कि वह सो रहे हैं. मैं ने उससे पूछा कि क्या वह अकेले हैं या कोई और है? उसने बताया कि नहीं वह अकेले हैं. मैंने रसोइए को कहा कि उन्हें उठाओ और चाय पिला दो और फ़ोन रख दिया. कुछ मिनट के बाद, ओरांव और आर के सिंह ने मुझे फ़ोन पर बताया कि काम हो गया.
जब आडवाणी ने अफवाह के चलते खाना छोड़ दिया
मुझे दुमका के डिप्टी कमिश्नर ने बताया जहाँ आडवाणी को नज़रबंद करके रखा गया था कि आडवाणी खाना बहुत कम खा रहे हैं. उन्हें खाना पसंद नहीं आ रहा. इसी दौरान, मीडिया के एक हिस्से ने यह अफवाह फैला दी कि आडवाणी को मेरे इशारे पर धीरे धीरे असर करने वाला ज़हर दिया जा रहा है. और इसी के चलते आडवाणी ने खाना बंद कर दिया है. मुझे मीडिया इतना गिर जाएगी यह जान कर बहुत अचंभा हुआ. इस अफवाह को कुचलने के लिए मैंने डिप्टी कमिश्नर को कहा कि वह तुरंत आडवाणी की बेटी प्रतिभा से संपर्क करे. मैंने आदेश दिया कि हेलीकाप्टर लेकर तुरंत प्रतिभा को ढूंढें और लेकर आएं. प्रतिभा के आने के बाद यह अफवाह ख़त्म हुआ.
चारा घोटाला पर
साफ़ छवि वाले तत्कालीन वित्त सचिव वी एस दुबे ने मुझे जाली वाउचर के आधार पर पशु पालन विभाग के नाम से ट्रेज़री से सदिग्ध धनराशि की निकासी के बारे में बताया. ये 1977-78 से निकल रहा था जब से भारत सरकार और बिहार सरकार ने संथाल परगना और छोटा नागपुर के इलाके में जन जाति समुदायों के लिए ट्राइबल सब-प्लान और दूसरी योजनाएं शुरू की थी. इन योजनाओं में पशु पालन क्षेत्र को बढ़ावा देने वाला एक कार्यक्रम शामिल था. लेकिन जैसे यह शुरू हुआ ठेकेदारों और सप्लायरों ने भ्रष्ट नौकरशाह से मिलकर गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं का गलत तरीके से इस्तेमाल करके अपना पॉकेट भरना शुरू कर दिया.
1981-82 के बाद, आने वाले वर्षों में पशुपालन विभाग के नाम पर ट्रेज़री से वापसी की राशि बहुत बढ़ गयी. घोटालेबाजों ने यह काम 10 मुख्य मंत्रियों के कार्यकाल तक जारी रखा था. जब मुझे दुबे के ज़रिए पता चला तो मैं बहुत गुस्सा हुआ.
मैं ने फ़ौरन वित्तीय मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक बुलाई जिसने वित्त मंत्रालय को सभी जिला अधिकारियों को त्वरित सन्देश भेजकर घोटाले की जांच का आदेश दिया. पश्चिमी सिंघभूम के जिला अधिकारी को जिला के ट्रेज़री में भयंकर अनियमितताएं मिली. इसी तरह रांची के जिला अधिकारी को भी गड़बड़ी का पता चला. मेरी सरकार ने उनकी रिपोर्ट पर त्वरित कार्रवाई की. 41 एफ़आईआर दर्ज हुए. मैंने ट्रेज़री महा घोटाले की जाँच के लिए जुडिशल कमीशन बनाया. मुझे इस पर गर्व है कि मैं ने वर्षों से चल रहे घोटाले से पर्दा उठाया जिसे मेरे पहले के मुख्यमंत्रियों ने नज़र अंदाज़ कर रखा था.
यहाँ मैं गलत के खिलाफ कार्रवाई कर रहा था लेकिन मेरे विरोधियों ने मुझे ही इस घोटाले का मास्टरमाइंड बता दिया. भाजपा और समता पार्टी में मेरे विरोधियों ने सीबीआई द्वारा इस घोटाले की जांच शुरू होने से पहले ही मुझे इसमें सीधे तौर पर संलिप्त होने का आरोप लगाया. भाजपा ने तो चारा चोर के नाम से एक पुस्तिका ही छपवा दिया. इसके कवर पेज पर एक कार्टून बनाया गया जिसमें मुझे भैंस पर बैठकर चारा खाते हुए दिखाया गया. सामंती मीडिया ने अदालत द्वारा मामले का संज्ञान लेने से पहले ही ट्रायल शुरू कर दिया. इससे पहले किसी मुख्य मंत्री के खिलाफ इतना संगठित तरीके से गलत अभियान नहीं चलाया गया था.
मामले में चार्जशीट फाइल करने के 17 वर्षों बाद निचली अदालत ने मुझे सज़ा सुनाई. निचली अदालत ने तीन और मामलों में सज़ा सुना दी. मैंने अदालत के किसी भी निर्णय के खिलाफ कुछ नहीं कहा और न ही कभी कहूँगा. मैं माननीय न्यायलय की इच्छा अनुरूप ही अपना जीवन बिताता रहा.
मंडल के लिए मैंने वी पी सिंह को तैयार किया
नई दिल्ली में नेशनल फ्रंट की सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही सत्ता के दो केंद्र बना गए थे – तत्कालीन प्रधान मंत्री वी पी सिंह और देवी लाल. दोनों ही एक दुसरे को लेकर असहज थे. वे लगातार एक दुसरे से विपरीत टिप्पणी कर रहे थे. इससे सरकार की स्थिरता संदिग्ध थी.
इससे चिंता शुरू हो गयी कि कहीं वी पी सिंह और देवी लाल के बीच असहजता के कारण नेशनल फ्रंट की सरकार गिर न जाए. इससे मेरी सरकार भी खतरे में पड़ सकती थी. मैंने अगस्त 1990 में वी पी सिंह की सरकार को बचाने के लिए एक योजना बनाया. किसी भी केन्द्रीय मंत्री को भनक लगे बगैर मैंने प्रधान मंत्री से भेंट का समय लिया जो मुझे तुरंत मिल गया. शिष्टाचार पूरा करने के बाद मैं ने कहा कि “आपको देवी लाल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए वरना यह सरकार गिर जाएगी.” वी पी सिंह तेज़ दिमाग के थे और उनकी राजनीती की सूझ बूझ अच्छी थी. उनहोंने जवाब दिया “देवी लाल जी जाट और पिछड़ों के नेता हैं. अगर मैं उनके खिलाफ कोई काम करता हूँ तो वह पूरे भारत में यह फैला देंगे कि मैं पिछड़ा विरोधी और गरीब विरोधी हूँ.’ मैं ने जवाब दिया, ‘एक समाधान है. मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट 1983 में दी थी जिसमें सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को 27 प्रतिशत कोटा देने की सिफारिश की गयी थी. वह फाइल आपके ऑफिस में धुल फांक रहा है. इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दें.’ मेरा पूरा विश्वास था कि अगर यह कर लिया गया तो यह देवी लाल के वी पी सिंह के पिछड़ा-विरोधी सभी प्रचार को नकार देगा.
प्रधान मंत्री थोडा हिचक रहे थे. मैं ने इस बात पर जोर दिया; मैं पूरी तरह से आश्वस्त था कि इससे वह गरीबों और पिछड़ों के मसीहा बन जाएंगे. मैंने जोर दिया कि मंडल आयोग की सिफ़ारिश को लागू करने से उनकी राजनीती में साख मज़बूत हो जाएगी और वह देवी लाल के मुकाबले ज्यादा सशक्त हो जाएंगे. मैंने वी पी सिंह को बिना किसी देरी के मंडल लागू करने पर बल दिया. वीपी सिंह आखिर संतुष्ट हुए. उनहोंने मुझे पुछा कि मैं कहाँ ठहरा हुआ हूँ. मैंने उन्हें बताया कि मैं चाणक्यपुरी में बिहार भवन में हूँ आप जब चाहें मुझे कॉल कर सकते हैं. लेकिन पहले कैबिनेट मीटिंग बुलाइए और बिना सोचे मंडल लागू कीजिए. वरिष्ठ नेता शरद यादव, राम विलास पासवान और बहुत सारे प्रधान मंत्री के साथ मेरी इस मीटिंग के बारे में अनजान थे. मैं ने उन्हें यह बताते हुए कि वी पी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय लिया है भरोसे में लिया. मेरे बिहार भवन के लिए निकलने के बाद, वी पी सिंह ने कैबिनेट की मीटिंग बुलाई और रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय ले लिया. उनहोंने मुझे अधिसूचना की एक प्रति विशेष सूचनावाहक से भेजा. मैंने इसे अपने ब्रीफ़केस में रखा और पटना के लिए निकल पड़ा.
नीतीश कुमार की राजद गठबंधन में वापसी की इच्छा
लालू यादव ने इसमें यह भी कहा है कि नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से नाता तोड़ कर एनडीए के साथ सरकार बनाने के छः महीने बाद ही गठबंधन में वापसी करनी चाही. इसके लिए उनहोंने अपने राजनैतिक सलाहकार प्रशांत किशोर को उनसे मिलने के लिए भेजा था. लेकिन राजद सुप्रीमो ने नीतीश को धोखेबाज़ बता कर उनकी वापसी पर रोक लगा दी.
इस पुस्तक में लालू के जीवन से जुड़े कई रोचक तथ्य मिलेंगे. इसमें राबड़ी से जेल में मिलने, मीसा के पैदा होने और उनेक नामकरण का भी ज़िक्र है. लालू ने इस किताब के माध्यम से उन पर मढ़े गए कई आरोपों को बड़ी सहजता से बयान किया है.
अगर आप बिहार की राजनीति और लालू को समझना चाहते हैं तो इसे जरूर पढ़ें. कई ऑनलाइन स्टोर पर यह 300 रुपए से भी कम में उपलब्ध है. यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में भी उपलब्ध है.