
बिहार चुनाव में विपक्ष का धांधली से एनडीए को जीतने के आरोप के बाद अब सरकार बनाने की तैयारी चल रही है. इस चुनाव में कांटे की टक्कर में एनडीए को 125 सीट मिले तो महागठबंधन को राष्ट्रीय जनता दल के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के साथ ही 110 सीट मिले जबकि एआईएमएम-बसपा गठबंधन को 6 सीट मिले और लोजपा को 1 और स्वतंत्र को 1 सीट मिले.
एनडीए गठबंधन को 125 जिसमें भाजपा को 74, जनता दल यूनाइटेड को 43 और अन्य सहयोगी पार्टी को 8 सीट मिले.
इस आंकड़े के आधार पर एनडीए के घोषित मुख्य मंत्री उम्मीदवार होने के नाते नीतीश कुमार के ही मुख्यमंत्री की संभावना है और वह अपना चौथा कार्यकाल शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार भी हैं. लेकिन इस बार रिपोर्टों के अनुसार, सुशिल मोदी को बिहार के उप मुख्य मंत्री पद से हटाकर राष्ट्रीय स्वयं संघ के कामेश्वर चौपाल को यह पद दिए जाने की चर्चा है.
कामेश्वर चौपाल स्वयं को चौपाल जाति का बताते हैं जो बिहार मे अनुसूचित जाति यानी दलित में आता है. हालांकि लगभग 20 साल पहले के एफ़आईआर में उनके दलित होने पर आपत्ति जताई गयी थी और उन पर आईपीसी की कई धाराएं और SC/ST एक्ट की भी धारा लगाई गयी थी.
क्या है मामला?
मामला यह है कि कामेश्वर चौपाल बिहार के अररिया ज़िला के एक दलित आरक्षित सीट रानीगंज से विधान सभा का चुनाव लड़ रहे थे. तभी सीआईडी को एक शिकायत मिली कि कामेश्वर चौपाल नहीं बल्कि खतवेय जाति के हैं जो अनूसूचित जाति में नहीं आती बल्कि पिछड़ी जातियों में आती है.
अररिया के तत्कालीन सीआईडी एसपी अमिताभ कुमार दास ने इसपर जांच शुरू की. जांच में शिकायत को सही पाया गया और सबूत इकठ्ठा करने के बाद तत्कालीन एसपी, सीआईडी ने पटना स्थित हरिजन थाना को एफ़आईआर करने का आर्डर दिया.
एफ़आईआर पंजीकरण संख्या 28/99 में चौपाल पर आईपीसी की धाराएं 401, 465, 468, 470 और 471 लगाई गईं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून, 1989 की भी धारा लगाई गयी.
बाद में, उस एफ़आईआर पंजीकरण को निरस्त करने के लिए श्री चौपाल वर्तमान कैबिनेट मिनिस्टर वकील रवि शंकर प्रसाद की मदद से पटना हाई कोर्ट पहुंचे. लेकिन पटना हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया.
वह मामला निचली अदालत में अब भी लंबित है.
“मैं तब सीआईडी में एसपी था और मेरी पोस्टिंग अररिया में थी. तभी मुझे शिकायत मिली कि कोई रानीगंज के अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षित विधान सभा सीट से चुनाव लड़ रहा है. इसके बाद हमने इसकी तफ्तीश की और पाया कि शिकायत सही है. हमने उनके खिलाफ पूरा सबूत इकठ्ठा किया और पटना थाना में उनके खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश दिया क्योंकि वह पटना के ही तब निवासी थे,” आईपीएस अमिताभ कुमार दास ने कहा.
“पुलिस और सीआईडी के एफ़आईआर करने के तरीके में अंतर होता है. पुलिस पहले एफ़आईआर करती है और फिर तफ्तीश करती है लेकिन सीआईडी में पहले तफ्तीश होती है, सबूत जुटाए जाते हैं और फिर एफ़आईआर दर्ज कराया जाता है. इसलिए इसमें कोई गुंजाइश नहीं कि हमारे पास उनके खिलाफ फेक दलित होने के सबूत नहीं थे,” पूर्व अधिकारी ने कहा.
उनहोंने यह भी बताया कि यह मामला अब भी निचले अदालत में लंबित हो सकता है और अगर वह उप मुख्य मन्त्री बन गए तो वह फ़ाइल भी नहीं बचेगी हो हमने और हमारो टीम ने मिलकर तैयार की थी.
कामेश्वर चौपाल भाजपा के राम मन्दिर निर्माण का दलित चेहरा हैं और आरएसएस ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत उनसे से पहला शिलान्यास कराया था.
चौपाल कई बार भाजपा के टिकट से लोक सभा और विधान सभा चुनाव लड़ चुके हैं उन्हें एक में भी जीत में नहीं मिली. वह राम विलास पासवान और पप्पू यादव की पत्नी रंजीता यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़े हैं.
उन्हें भाजपा ने 2002 में विधान पार्षद बनाया था. अभी वह राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए ट्रस्ट के 15 सदस्यों में से एक हैं.