
भारत में भगवान राम के जिस जन्मस्थल को लेकर पूरे देश में कई चक्र में दंगे हो चुके, सैकड़ों लाशें गिर चुकीं, और संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया, उस जन्मस्थल पर अब विवाद गहराने लगा है. 2018 में बौद्ध धर्म के मानने वालों ने बाबरी मस्जिद की जगह को पहले बौद्ध मंदिर बताया था. इसके बाद अब नेपाल के प्रधनमंत्री ने श्री राम का जन्म स्थान नेपाल के थोरी में होने का दावा किया है. नेपाल के प्रधानमंत्री ने अपने इस दावे को मज़बूत बनाने के लिए कई तर्क भी प्रस्तुत किया है.
नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने सोमवार को दावा किया कि “वास्तविक” अयोध्या नेपाल में है, भारत में नहीं. अयोध्या से आशय राम का जन्म स्थल है.
उन्होंने कहा कि भगवान राम का जन्म दक्षिणी नेपाल के थोरी में हुआ था.
काठमांडू में प्रधानमंत्री आवास में नेपाली कवि भानुभक्त की जयंती के अवसर पर ओली ने कहा कि नेपाल “सांस्कृतिक अतिक्रमण का शिकार हुआ है और इसके इतिहास से छेड़छाड़ की गई है.”
भानुभक्त का जन्म पश्चिमी नेपाल के तानहु में 1814 में हुआ था और उन्होंने वाल्मीकि रामायण का नेपाली में अनुवाद किया था.
उनका देहांत 1868 में हुआ था.
ओली ने कहा, “हालांकि वास्तविक अयोध्या बीरगंज के पश्चिम में थोरी में स्थित है, भारत अपने यहां भगवान राम का जन्मस्थल होने का दावा करता है.”
ओली ने तर्क देते हुए कहा कि जब परिवहन का कोई तेज़ साधन नहीं था तब इतनी दूरी पर राम और सीता का विवाह संभव ही नहीं था.
प्रधानमंत्री ओली के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा के अनुसार उन्होंने कहा, “बीरगंज के पास जिस स्थान का नाम थोरी है वह वास्तविक अयोध्या है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था. भारत में अयोध्या पर बड़ा विवाद है। लेकिन हमारी अयोध्या पर कोई विवाद नहीं है.”
उन्होंने कहा, “वाल्मीकि आश्रम भी नेपाल में है और जहां राजा दशरथ ने पुत्र के लिए यज्ञ किया था वह रिडी में है जो नेपाल में है.”
ओली ने दावा किया कि चूंकि दशरथ नेपाल के राजा थे यह स्वाभाविक है कि उनके पुत्र का जन्म नेपाल में हुआ था इसलिए अयोध्या नेपाल में है.
उन्होंने कहा कि नेपाल में बहुत से वैज्ञानिक अविष्कार हुए लेकिन दुर्भाग्यवश उन परंपराओं को आगे नहीं बढ़ाया जा सका.
अयोध्या की विवादित ज़मीन बौद्ध विहार होने का भी दावा
2018 में बौद्ध समुदाय के कुछ लोगों ने दावा किया था कि विवादित जमीन बौद्धों की है और यह पहले एक बौद्ध स्थल था.
अयोध्या में रहने वाले विनीत कुमार मौर्य ने सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में याचिका दायर की थी. उन्होंने विवादित स्थल पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा चार बार की जाने वाली खुदाई के आधार पर यह दावा किया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर ऐसी अंतिम खुदाई साल 2002-03 में हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका 2018 ही दायर की गई थी. इसे संविधान के अनुच्छेद 32 (अनुच्छेद 25, 26 और 29 के साथ) के तहत एक दीवानी मामले के रूप में दर्ज किया गया था. कहा गया था कि यह याचिका ‘बौद्ध समुदाय के उन सदस्यों की तरफ से दायर की गई है जो भगवान बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर जीवन जी रहे हैं.’
याचिका में दावा किया गया था कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था. मौर्य ने अपनी याचिका में कहा था, ‘एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं.’ मौर्य ने दावा किया है, ‘जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं.’
उन्होंने इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की थी कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर और सारनाथ की तरह ही एक बौद्ध विहार घोषित किया जाए. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि वहां कोई मन्दिर के अवशेष नहीं मिले लेकिन बहुमत की आस्था को देखते हुए वह ज़मीन राम मन्दिर के लिए दी जाती है. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जिस तरह से आया वह यह तो दबाव में लिया गया निर्णय माना गया या फिर लालच में क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जिस मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह निर्णय दिया था उन्हें भाजपा (सत्ताधारी पार्टी) ने राज्य सभा के लिए मनोनीत किया.